Tuesday, December 23, 2025
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वर्ल्ड लंग डे पर मैक्स हॉस्पिटल देहरादून ने ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया के प्रति किया जागरुक

हरिद्वार: हर साल 25 सितंबर को वर्ल्ड लंग डे मनाया जाता है। इस अवसर पर, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, देहरादून, ने नींद से जुड़ी एक गंभीर लेकिन अक्सर अनदेखी की जाने वाली बीमारी – ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) को लेकर लोगों को जागरुक किया। यह एक गंभीर बीमारी है जिसको फेफड़ों और दिल का ‘साइलेंट किलर’ भी माना जाता है।

ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) एक ऐसी स्थिति है जिसमें नींद के दौरान व्यक्ति की सांस बार-बार रुकती या धीमी हो जाती है। इससे शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे नींद बार-बार टूटती है और व्यक्ति को अगली सुबह थकावट, चिड़चिड़ापन या सिरदर्द जैसे लक्षण महसूस होते हैं। यह समस्या रात भर में दर्जनों बार हो सकती है, लेकिन मरीज को इसका एहसास नहीं होता।

डॉ. विवेक कुमार वर्मा, प्रिंसिपल कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, देहरादून, ने बताया, “लोग अक्सर जोर से खर्राटे लेने को सामान्य मानते हैं, लेकिन यह OSA का शुरुआती संकेत हो सकता है। यदि किसी को खर्राटों के साथ सांस रुकने, दिन में नींद आने या थकान जैसे लक्षण महसूस हों, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। OSA का शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है और यह हाई ब्लड़ प्रेशर, डायबिटीज, हृदय संबंधी रोग, स्ट्रोक, मोटापा, अवसाद और याददाश्त की कमजोरी जैसी कई समस्याओं से जुड़ा हो सकता है। दुर्भाग्यवश, भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता की काफी कमी है, जिसके कारण मरीज वर्षों तक सही निदान और इलाज से वंचित रह जाते हैं।“

डॉ. वर्मा, ने बताया कि, “OSA की पहचान और इलाज के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें ओवरनाइट स्लीप स्टडी (पॉलीसोमनोग्राफी) और होम बेस्ड स्लीप टेस्ट शामिल हैं। इलाज के लिए CPAP मशीन, माउथ डिवाइसेज़, जीवनशैली में बदलाव, वजन नियंत्रण, और कुछ मामलों में सर्जिकल विकल्प भी उपलब्ध हैं। अच्छी नींद केवल आराम के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। OSA एक गंभीर लेकिन पूरी तरह काबू में आने वाली बीमारी है, बशर्ते इसका समय पर पता लग जाए।”

मैक्स अस्पताल, देहरादून, में हम ऐसे स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए काम कर रहे हैं जो अक्सर अनदेखी कर दी जाती है, लेकिन सेहत पर बड़ा असर डाल सकती हैं। अगर समय पर पहचान और इलाज हो जाए, तो नींद की गुणवत्ता ही नहीं, पूरी सेहत भी बेहतर हो सकती है।

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