उत्तराखण्ड

उत्तराखंड: बस कुछ घंटों का इंतजार और, किसको मिलेगी सत्ता?

देहरादून: चुनाव परिणाम आने में कुछ ही घंटों का समय बच गया है। कल आने वाले चुनाव परिणामों से पहले ही सियासी खेमों में हलचल और बढ़ गई है। 70 विधानसभा सीटों पर 632 उम्मीदवारों की किस्मत का निर्णय हो जाएगा। लेकिन, सवाल ये है अगर निर्णय जनता के हाथों में है तो फिर खरीद-फिरोख्त क्यों? क्या इस बार भी विधायकों की मंडी सजेगी? इस बार कौन-कौन और कितने दाम में बिकेगा? सवाल यह भी है कि क्या जनता के निर्णय को राजनीतिक दल ऐसे ही खरीदते और बेचते रहेंगे?

10 मार्च को उत्तराखंड के साथ चार अन्य राज्यों की किस्मत अगले पांच सालों के लिए तय हो जाएगी। गुरुवार को खुलने वाला पिटारा किसी को आतिशबाजी का मौका देगा तो किसी को निराशा हाथ लगेगी। इस चुनाव में प्रदेश में कई दिग्गजों की साख भी दांव पर लगी है। सत्ता की राह को आसान करने के लिए निर्दलीयों पर भी दांव खेलने के लिए राजनीतिक दल तैयार हैं और जरुरत पड़ी तो दूसरे के किले को भेदने में भी वक्त नहीं लगेगा।

भाजपा अंदरखाने राज्य की स्थिति से वाकिफ है। जिसके चलते तोड़-जोड़ से भी सत्ता में बैठने को तैयार है। लोकतंत्र के सियासी खेल के आखरी दिन चर्चाओं के बाजार में निर्दलीय प्रत्याशियों की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पूर्व केंद्रय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक निर्दलीय प्रत्याशी ने तो मुलाकात की पुष्टी भी की है। बाहर भले ही भाजपा सत्ता में वापसी का राग लाप रही हो, लेकिन वो 2012 के भी समीकरणों से बाख़बर है।

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 31 का आंकड़ा हासिल किया था। कांग्रेस ने 32 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा को मिला आंकड़ा सरकार बनाने के लिए बहुत तो नहीं था, लेकिन, जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई जा सकती थी। मौके का फायदा कांग्रेस ने उठाया और सत्ता पर काबिज हुई।

अब भाजपा इतनी आसानी से सत्ता किसी और के हाथों से नहीं जाने देना चाहती है। इस बात का अंदाजा कांग्रेस को भी हो चुका है। भाजपा 2012 नहीं दोहराना चाहती, तो कांग्रेस 2016 के हलातों से नहीं गुजरना चाहती। कहावत है कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए पुख्ता रणनीति बनाकर सत्ता पर काबित होने के लिए तैयारी में जुटी है।

सत्ता में वापसी का दावा मतदान के दिन से ही कांग्रेस करती आई है। लेकिन, हालात कुछ भी हो सकते हैं। ये कांग्रेस भी जानती है। यही कारण है कि कांग्रेस अपने विधायकों को राज्य से दूर ले जाने की तैयारियों में है। 2016 प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में काला अध्याय जैसा है।

यही कारण है कि सरकार बनने के बाद गिरने का डर भी कांग्रेस को अभी से सता रहा है। फिलहाल आज का दिन राजनीतिक खेमों में जोर आजमाइशों भरा है। जनता का फैसला दे चुकी है। सत्ता को पाने के लिए खरीद फिरोख्त की राजनीति का खेल इस भी होने के आसार हैं। उत्तराखंड में इसकी शुरुआत 2016 से हुई थी। उसीको दोहराने की इस बार भी तैयारी चल रही है।

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