उत्तराखंड

उत्तराखंड में 7 साल पहले हुई 339 पदों वाली पुलिस दारोगा भर्ती में मिले धांधली के सबूत! पुलिस विंग से इतर विजिलेंस करेगी जांच

देहरादून: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा में धांधली मामला खुलने के बाद अन्य भर्ती परीक्षाओं में भी जांच की झड़ी सी लग गई है। परत- दर- परत पुरानी भर्तियों पर भी जांच की आंच पहुंच रही है। पहले स्नातक स्तरीय वीडीओ- वीपीडीओ भर्ती परीक्षा फिर एक साल पहले सचिवालय रक्षक एवं न्यायिक कनिष्ठ सहायक और अब 7 साल पहले हुई सब- इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा।

जी हां, वर्ष 2015 में हुई सब इंस्पेक्टर भर्ती भी जांच के दायरे में आ गई है। 339 पदों पर हुई दरोगा भर्ती में गड़बड़ी की आशंका के दायरे में आ गई है। इस भर्ती में भी कुछ लोगों के गलत तरीके से पास होने की आशंका जताई गई है। ऐसे में पुलिस मुख्यालय ने शासन से विजिलेंस जांच की सिफारिश की थी। गृह विभाग ने इस मामले में कार्मिक विभाग से विजिलेंस जांच के लिए कहा है। गृह विभाग से इस भर्ती को लेकर जांच के आदेश होते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया है

दरअसल, वर्तमान में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा स्नातक स्तरीय वीडीओ – वीपीडीपी 2021 भर्ती परीक्षा पेपर लीक मामले में एसटीएफ की जांच चल रही है। इसमें अब तक 24 नकल माफिया के गिरफ्तारी हो चुकी है। इस जांच के दौरान कुछ ऐसे तथ्य सामने आए, जिसमें इस पुलिस दारोगा भर्ती में गड़बड़ी की बातें सामने आई हैं।

UKSSSC (Uttarakhand Subordinate Service Selection Commission) के स्नातक स्तर की परीक्षा लीक मामले में एसटीएफ की ओर से गिरफ्तार किए गए गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय के असिस्टेंट एस्टेब्लिसमेंट आफिसर (AEO) दिनेश चंद्र की गिरफ्तारी के बाद 2015 में हुई सब इंस्पेक्टरों की सीधी भर्ती पर तलवार लटक गई है। यह परीक्षा पंतनगर विश्वविद्यालय ने कराई थी। जबकि दिनेश चंद्र 2006 से 2016 तक विश्विवद्यालय के परीक्षा सेल में कार्यरत रहा। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि दिनेश चंद्र ने हाकम सिंह के साथ मिलकर भर्ती में गड़बड़ी करवाई है।

इसी के मद्देनजर पुलिस मुख्यालय ने गृह विभाग को पुलिस विंग को छोड़ किसी अन्य जांच एजेंसी से 2015 दरोगा भर्ती में गड़बड़ी आशंका जाहिर करते हुए निष्पक्ष पारदर्शी जांच की प्रस्ताव भेजा था।

चूंकि, यह परीक्षा पुलिस विभाग की है। ऐसे में पुलिस मुख्यालय के अंतर्गत आने वाली कोई एजेंसी इसकी जांच नहीं कर सकती थी। लिहाजा पुलिस मुख्यालय ने विजिलेंस जांच की सिफारिश की थी। बता दें कि विजिलेंस पुलिस विभाग के अधीन नहीं आता। यही कारण है कि मुख्यालय के प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए विजिलेंस को जांच सौंपी गई है।

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